भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र तथा 7वां सबसे बड़ा देश है। अनेक धर्मों, भाषाओं व मत-मतांतरों के इस देश में हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म का जन्म हुआ जिनका पालन विश्व की 25 प्रतिशत जनसंख्या करती है।
भारत विश्व भर में लोकतंत्र का प्रेरणा स्रोत और ध्वजारोही है। यहां लोकतांत्रिक विधि से होने वाले शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन पर समस्त विश्व की नजरें रहती थीं। हालांकि शासन प्रणालियों में लोकतंत्र को ही न्यूनतम दोषपूर्ण पद्धति माना जाता है और इसे मजबूत करने में चुनावों का विशेष महत्व है परन्तु आज चुनावों में अनेक खराबियां आ जाने से चुनावों का स्वरूप ही बिगड़ गया है और इनमें हिंसा आम बात हो गई है :
* जनवरी 2012 में पंजाब विधानसभा चुनावों में फिरोजपुर विधानसभा क्षेत्र में शिअद व कांग्रेस समर्थकों के बीच गोली चलने से एक शिअद वर्कर की मृत्यु हो गई जबकि अन्य स्थानों पर झड़पों में भी अनेक लोग घायल हुए।
* जून 2012 में पंजाब में म्यूनिसीपल कार्पोरेशन चुनावों में लुधियाना में शिअद व कांग्रेसी समर्थकों के झगड़े में गोलीबारी से एक युवक की मृत्यु हो गई तथा अन्य अनेक स्थानों पर भी तोड़-फोड़ की घटनाएं हुईं।
* दिसम्बर 2012 में गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भारवाड़ में एक भाजपा विधायक द्वारा गोली चलाने से 4 लोग घायल हो गए। चुनावों में घर कर रही यह बीमारी लगातार बढ़ रही है। पुलिस कर्मियों के सामने ही अपराधी तत्वों द्वारा घातक हथियारों के इस्तेमाल व बमबाजी तक की घटनाएं हो रही हैं और प्रशासन को भी बंदूक का सहारा लेना पड़ रहा है।
* 12 फरवरी 2013 को कोलकाता के एक कालेज में छात्र संघ चुनावों के दौरान उम्मीदवारों के बीच नामांकन पत्र बांटते समय सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के छात्र गुटों में खूनी झड़प में देसी बम और गोलियों के इस्तेमाल के अलावा पथराव भी किया गया। पुलिस कर्मियों पर भी गोलियां चलाई गईं जिससे एक सब-इंस्पैक्टर की मृत्यु हो गई तथा एक अन्य पुलिस कर्मी घायल हो गया।
* 12 फरवरी 2013 को ही असम के गोलपाड़ा जिले में अनेक स्थानों पर पंचायत चुनावों के विरोध में मतदान केंद्रों पर हमला कर रही हिंसा पर उतारू भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस गोलीबारी में कम से कम 11 लोगों की मृत्यु तथा अनेक लोग घायल हो गए।
एक ओर तो हिंसा द्वारा देश में चुनाव प्रणाली को नाकाम करने की कोशिश की जा रही है तथा दूसरी ओर चुने हुए जनप्रतिनिधियों को तरह-तरह की धमकियां देकर चुनावों से दूर करने की कोशिशें जारी हैं। जम्मू-कश्मीर में लगातार लोकतंत्र को पटरी से उतारने की कोशिशें कर रहे अलगाववादी समय-समय पर राज्य के लोगों से चुनावों का बहिष्कार करने का आह्वान करते रहते हैं और उन्होंने राज्य की पंचायतों के निर्वाचित सरपंचों और पंचों को निशाना बनाना शुरू कर रखा है।
उन पर हमले लगातार जारी हैं। इससे अनेक सरपंचों और पंचों की मृत्यु व अनेक घायल हुए हैं। जनवरी में ही अलगाववादियों ने एक सरपंच की हत्या करने के अलावा एक महिला सरपंच को गंभीर रूप से घायल कर दिया।
हालांकि आज केंद्र एवं राज्यों की सरकारें अपने मंत्रियों, सांसदों, विधायकों तथा अन्य महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं परन्तु प्रदेश सरकार ने पंचायत सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थता व्यक्त की है जिस कारण अलगाववादियों के डर से प्रदेश की पंचायतों के 33,000 सदस्यों में से 400 से अधिक सदस्य त्यागपत्र दे चुके हैं।
स्पष्ट है कि चुनावों का स्वरूप लगातार बिगड़ता जा रहा है। यदि इनमें हिंसा का दौर इसी तरह जारी रहा तब तो लोग चुनावों का हिस्सा बनने से ही तौबा कर लेंगे। इसी कारण विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय चुनाव प्रणाली में घुस आए सत्ताबल, धनबल और बाहुबल को समाप्त करने के लिए गंभीर रणनीतिक सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है। आखिर ऐसे चुनावों का क्या लाभ जिनमें जान के लिए ही खतरा पैदा हो जाए!
( वीरेन्द्र खागटा )